Sunday 28 November 2010

गुलज़ार की खूबसूरत त्रिवेणियाँ ..

त्रिवेणी क्या है ??त्रिवेणी के बारे में गुलजार लिखते हैं:-

त्रिवेणी न तो मसल्लस है,ना हाइकू,ना तीन मिसरों में कही एक नज्‍़म। इन तीनों ‘फ़ार्म्ज़’में एक ख्‍़याल और एक इमेज का तसलसुल मिलता है। लेकिन त्रिवेणी का फ़र्क़ इसके मिज़ाज का फर्क है। तीसरा मिसरा पहले दो मिसरों के मफ़हूम को कभी निखार देता है,कभी इजा़फा करता है या उन पर ‘कमेंट’ करता है। त्रिवेणी नाम इस लिये दिया गया था कि संगम पर तीन नदियां मिलती हैं। गंगा ,जमना और सरस्वती। गंगा और जमना के धारे सतह पर नज़र आते हैं लेकिन सरस्वती जो तक्षिला(तक्षशिला) के रास्ते बह कर आती थी,वह ज़मीन दोज़ हो चुकी है। त्रिवेणी के तीसरे मिसरे का काम सरस्वती दिखाना है जो पहले दो मिसरों में छुपी हुई है।


कोई सूरत भी मुझे पूरी नजर नहीं आती
आँख के शीशे चटके हुए हैं कब से

टुकडो टुकडो में सभी लोग मिले हैं मुझको !



आप के खातिर अगर हम लूट भी लें आसमां
क्या मिलेगा चंद चमकीले शीशे तोड़ के !

चाँद चुभ जाएगा ऊँगली में खून आ जायेगा..



कभी-कभी बाजार में यूँ भी हो जाता है
कीमत ठीक थी ,जेब में इतने दाम नहीं थे

ऐसे ही एक बार मैं तुमको हार आया था !




वह मेरे साथ ही था दूर तक मगर एक दिन,
जो मुड के देखा तो वह दोस्त मेरे साथ ना था

फटी हो जेब तो कुछ सिक्के भी खो जाते हैं !



लोग मेलों में भी गुम होकर मिले हैं भला
दास्तानो के किसी दिलचस्प एक मोड़ पर

यूँ हमेशा के लिए भी क्या बिछड़ता है कोई !




जिंदगी क्या है जानने के लिए,
जिंदा रहना बहुत जरुरी है

आज तक कोई रहा तो नहीं !



इस तरह ख्याल तेरा जल उठा की बस
जैसे दीया-सलाई जली हो अँधेरे में..

अब फूंक भी दो,वर्ना ये ऊँगली जलाएगा !



तमाम सफ़हे किताबों के फडफडाने लगे
हवा धकेल के दरवाजा आ गयी घर में

कभी हवा की तरह तुम भी आया जाया करो!



क्या पता कब कहाँ मारेगी?
बस कि मैं जिंदगी से डरता हूँ

मौत का क्या है,एक बार मारेगी!






रात के पद पे कल ही तो उसे देखा था
चाँद बस गिरने ही वाला था फलक से पाक कर

सूरज आया था,जरा उसकी तालशी लेना !

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